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ना कोई दिल में समाया ना कोई पहलू में आया
जा के भी पास रहीं तुम ही
और जान-ए-जाँ जान-ए-मन
जानती हो
ना कोई दिल में समाया ना कोई पहलू में आया
जा के भी पास रहीं तुम ही
और जान-ए-जाँ जान-ए-मन
जानती हो
क्यों तुमने दामन चुराया तुम जानों मैं क्या बताऊँ
मुझमें ही कुछ ऐब होगा क्यों तुम पे तोहमत लगाऊँ
मैं तो यहीं कहूँगा पूछोगी जब भी
ह्म ह्म ह्म ह्म
जा के भी पास रहीं तुम ही
और जान-ए-जाँ जान-ए-मन
जानती हो
तुम जो मुझे दे गई हो इक ख़ूबसूरत निशानी
लिपटा के सीने से उसको कट जाएगी ज़िन्दगानी
मैं तो यहीं कहूँगा पूछोगी जब भी
ह्म ह्म ह्म ह्म
जा के भी पास रहीं तुम ही
और जान-ए-जाँ जान-ए-मन
जानती हो
ना कोई दिल में समाया ना कोई पहलू में आया
जा के भी पास रहीं तुम ही
और जान-ए-जाँ जान-ए-मन
R. D. BURMAN, SAHIR LUDHIANVI
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