Lyrics
शाम ढालने लगी रंग बदलने लगी
दर्द बढ़ने लगा
तनहाईयाँ मुझको च्छुने लगी
शाम ढालने लगी रंग बदलने लगी
दर्द बढ़ने लगा
तनहाईयाँ मुझको छूने लगी
शाम ढालने लगी
बेवफा भी नही बवफ़ा भी नही
उनका अंदाज़ सबसे निराला ही था
मैं तो पीने लगा पीता ही गया
मेरी किस्मत में शायद ये प्याला ही था
धड़कने रुक गयी जिस्म थकने लगा
अब तो साँसे भी रूखा बदलने लगी
शाम ढालने लगी
दर्द इतना बड़ा सहा जाता नही
बंद गलियों में कोई आता जाता नही
झल गया घर मेरा रह गया ये धुआँ
कौन किसका हुआ ज़माने में यहाँ
अब कज़ा ही कोई राह देंगी मुझे
हाथों से ज़िंदगी अब फिसलने लगी
शाम ढालने लगी
PRAKASH RAHULE AADAM, S. CHATURSEN
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